वर्तमान के मुद्दों पर लघु लेख 1.गंभीर बीमारिया 2.कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट 3.इंटरनेट ऑफ थिंग्स युग

     वर्तमान के तीन मुद्दों पर लघु लेख              
1.गंभीर बीमारियों का बढ़ता दायरा

2.कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स

3.इंटरनेट ऑफ थिंग्स के युग में डाटा सुरक्षा की चुनौती



      गंभीर बीमारियों का बढ़ता दायरा


यह बेहद चिंताजनक है कि स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और इनकी गुणवत्ता के मामले में भारत की स्थिति बेहद दयनीय है। यह खुलासा लेंसेट की एक रिपोर्ट से हुआ है जिसमें दर्शाया गया है कि भारत 195 देशों की सूची में अपने पड़ोसी देश चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान से भी पीछे है। रिपोर्ट के मुताबिक तपेदिक(टीबी), दिल की बीमारी, पक्षाघात, कैंसर और किडनी की बीमारी से निपटने के मामलों में भारत का प्रदर्शन बेहद खराब है। रिपोर्ट में भारत को चेताते हुए कहा गया है कि अगर स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार नहीं हुआ तो गंभीर बीमारियों से मरने वालों की तादाद बढ़ सकती है।
क्या है 
देश में सालाना होने वाली कुल मौतों में से 6 प्रतिशत लोगों की मौत कैंसर से होती है। यह दुनिया भर में कैंसर से होने वाली कुल मौतों का 8 प्रतिशत है। कैंसर की वजह से देश में हर रोज 1300 मौतें होती हैं। 
कैंसर की तरह मधुमेह भी भारत के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से पीडित हैं। हर वर्ष तकरीबन 15 लाख लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। 
इसी तरह भारत की आधी से अधिक आबादी श्वास संबंधी रोगों और फेफड़ों से जुड़ी शिकायतों से ग्रस्त है। प्रतिदिन तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग डॉक्टरों के पास जाते हैं। इस तरह भारत विश्व की सर्वाधिक बीमारियों का बोझ उठाने वाले देशों में शुमार हो चुका है।

                  
विश्व में असंक्रामक रोगों से मरने वाले लोगों की तादात लगातार बढ़ रही है और उसमें भारत की स्थिति बेहद नाजुक है। असंक्रामक बीमारियों में कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और सांस लेने में परेशानी संबंधी प्रमुख चार बीमारियां हैं। इनसे निपटने के लिए अभी तक कारगर कदम नहीं उठाए गए हैं। 
हालांकि भारत सरकार असंक्रामक रोगों से निपटने के लिए भारी धनराशि खर्च कर रही है, लेकिन उसके अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि अगर इन बीमारियों पर शीघ्र ही नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया तो ये राष्ट्रीय आपदा का रूप ग्रहण कर सकती हैं और इससे निपटना आसान नहीं रह जाएगा। 
सरकार की कोशिश यह है कि 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों में गैर संचारी रोगों को लेकर ज्यादा से ज्यादा जागरूकता पैदा किया जाय और व्यापक स्तर पर उनका शारीरिक परीक्षण कराया जाए।
भारत के महापंजीयक द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि देश के 35 से 64 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में 42 फीसद मौत की वजह असंक्रामक रोग है। अगर इन रोगों के लक्षणों को समझ लिया जाय तो इस पर नियंत्रण पाने में आसानी होगी।
       

         
     
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      कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स

प्रकृति ने भले ही उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड को गंगा-यमुना जैसी सदावाहिनी नदियों की सौगात दी हो, लेकिन जल संसाधन प्रबंधन में इन राज्यों का प्रदर्शन बहुत खराब है। नीति आयोग ने 13 जून 2018 को 'कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' जारी की जिस पर ये राज्य सबसे निचले पायदान पर हैं। आयोग की इस इंडेक्स पर सत्र गैर-हिमालयी राज्यों में गुजरात पहले नंबर पर है जबकि बिहार, यूपी, हरियाणा और झारखंड सबसे निचले पायदान पर हैं। वहीं हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों की सूची में सबसे अच्छा प्रदर्शन त्रिपुरा का है।
क्या है 

नीति आयोग की 'कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' पर फिसड्डी उत्तर के राज्य
गुजरात पहले, मध्य प्रदेश दूसरे और आंध्र प्रदेश तीसरे नंबर पर
नीति आयोग ने वर्ष 2016-17 के लिए इन राज्यों की रैंकिंग की है। आयोग की वाटर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा स्कोर 76 गुजरात का है और रैंकिंग में यह पहले नंबर पर है जबकि झारखंड का स्कोर मात्र 35 और उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड का स्कोर सिर्फ 38 है। 
इन राज्यों में झारखंड की रैंक 17वीं, हरियाणा की 16वीं, उत्तर प्रदेश की 15वीं और बिहार की 14वीं है। 
2015-16 में उत्तर प्रदेश की 14वीं रैंक थी। मध्य प्रदेश 69 स्कोर के साथ इस इंडेक्स पर दूसरे नंबर पर है।
आयोग का कहना है कि जिन राज्यों में जल का अभाव है, जल संसाधनों के प्रबंधन के मामले में उनका प्रदर्शन बेहतर है। 
मसलन, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का इस इंडेक्स पर उच्च स्थान है। आयोग ने उन राज्यों का भी उल्लेख किया है जिन्होंने जल प्रबंधन बेहतर करने की कोशिश भी की है। 
राजस्थान ने इस मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। जहां तक हिमालयी और पूवोत्तर के राज्यों का सवाल है तो त्रिपुरा पहले नंबर पर जबकि हिमाचल प्रदेश दूसरे और उत्तराखंड छठे नंबर पर है।
आयोग का कहना है कि कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स पर जिन राज्यों का प्रदर्शन खराब है वहां देश की 50 प्रतिशत आबादी रहती है और खेती का केंद्र भी यही राज्य हैं। 
ऐसे में इन प्रदेशों में जल प्रबंधन की खराब स्थिति आने वाले दिनों में संकट की ओर इशारा कर रही है। देश का 20 से 30 प्रतिशत कृषि उत्पादन इन्हीं राज्यों से होता है। ऐसे में जल संकट गहराने से खाद्य सुरक्षा पर भी खतरा होगा।
देश पर मंडराते जल संकट की ओर इशारा करते हुए आयोग की इस रिपोर्ट में कहा है कि भारत इस समय इतिहास के अब तक के सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा है और इसके चलते आजीविका पर भी खतरा मंडरा रहा है। लगभग 60 करोड़ भारतीयों को जल की कमी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं दो लाख लोगों की हर साल सेफ पेयजल के अभाव में जान जा रही है।
2030 तक देश में पेयजल की मांग दोगुनी हो जाएगी जिससे देश के जीडीपी की छह प्रतिशत तक हानि हो सकती है। यही वजह है कि जल के बेहतर प्रबंधन के इरादे से आयोग ने 'कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' विकसित की है।
कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स पर राज्यों की रैंक
रैंक गैर-हिमालयी राज्य

गुजरात
मध्य प्रदेश
आंध्र प्रदेश
कर्नाटक
महाराष्ट्र
पंजाब
तमिलनाडु
तेलंगाना
छत्तीसगढ़
राजस्थान
गोवा
केरल
उड़ीसा
बिहार
उत्तर प्रदेश
हरियाणा
झारखंड
रैंक हिमालयी व पूर्वोत्तर के राज्य
त्रिपुरा
हिमाचल प्रदेश
सिक्किम
असम
नागालैंड
उत्तराखंड
मेघालय

इंटरनेट ऑफ थिंग्स के युग में डाटा सुरक्षा की चुनौती

आज के समय में राजनैतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में बडे़-बड़े घोटाले और उलट-फेर हो रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इन सबके पीछे ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स‘ का हाथ है। दरअसल, तकनीक की प्रगति के साथ हमारे अधिकांश उपकरण एक-दूसरे से जुड़े हुए रहने लगे हैं।

विश्व में तकनीक की दृष्टि से तीन बड़े स्तरों पर काम हो रहा है। इनमें (1) इंटरनेट ऑफ थिंग्स (2) आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस या मशीन लर्निंग, और (3) क्रिप्टोकरंसी हैं।

यहाँ हम इंटरनेट ऑफ थिंग्स के बारे में बात कर रहे हैं। आज हमारे हर छोटे-बड़े उपकरण के द्वारा हमारी निजी जानकारियों का पता लगाया जा सकता है। इसका सीधा सा अर्थ इन उपकरणों को हैक करने से है।

एक स्मार्ट सिटी में सेंसर और कैमरे के जरिए नजर रखी जाती है। एक हैकर के लिए इनके जरिए सूचना एकत्रित करना कोई बड़ी बात नहीं है। इस सूचना की सुरक्षा के लिए एनक्रिप्शन ही अच्छा उपाय है, और क्रिप्टोग्रैफी के जरिए ऐसा करना संभव हो सकता है।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स से जुड़े उपकरण की सुरक्षा के लिए मैसेज ऑथेन्टिकेशन कोड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सामान्य भाषा में इसे वन टाइम पासवर्ड (ओ.टी.पी) कहते है। बैंक से संबंधित जानकारी, क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड आदि के लिए उपभोक्ता को इसी प्रकार की सुविधा दी जाती है।

डाटा सुरक्षा के क्षेत्र में ‘लाइट वेट क्रिप्टोग्रैफी‘ तुलनात्मक रूप से अधिक सक्षम तकनीक है।

क्रिप्टोग्रैफी कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिसे घुमाकर साइबर सुरक्षा का काम पूरा माना जा सके। यह एक गणितीय संरचना है, जो अत्यधिक जटिल होती है। लेकिन ऐसा नहीं कि इसका कोई तोड़ नहीं है। एनक्रिप्शन कितना भी जटिल क्यों न हो, इसे हैक करने वाले तैयार होते जाते हैं। अतः यह एक निरंतर प्रक्रिया है। हमें हर समय सजग और प्रयत्नशील रहने की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित अतानू विश्वास और विमल रॉय के लेख पर आधारित। 

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