कहानी :-पीरो बा(मारवाडी लघुकथा)
पीरोबा को जब से देख रहा हूँ तभी से वही शक्लो सूरत है ,विशेष कोई फर्क नजर नहीं आया ।मेरे ही नहीं पिताजी की स्मृतियों में भी पीरोबा वैसे ही उभरते है, जैसे आज है ।सिर पर सफेद साफा ,छितराई सी मूंछे और हमेशा खिचड़ी मटमैली दाढ़ी ,पीले से दाँत ,चेहरे पर उनके जीवनोभव की तरफ इशारा करती है ।कहते है इस गांव में सबसे अधिक दर्द झेला है और जिंदगी के कई उतार चढावों से गुजरे वो है पीरोबा ।
आप उनके स्थिर चेहरे और उभरते निशान और दर्द को बयां करती वो गहरी आँखे जिससे आप अनुभव की गहराइयों को समझ सकते हो ।,मगर जब वो मुस्कुरातें है तो अपना ही नहीं ,आपका दर्द भी भुला देते है।
पीरोबा गांव के वो एकमात्र आदमी है जिनसे पुरे गांव को लगाव है कुछ स्वार्थवश कुछ निस्वार्थ भाव से ।बच्चे हो बड़े हो स्त्री हो या पुरुष हरेक को गाहे-बगाहे पिरोबा की जरूरत पड़ ही जाती है ।
90 वर्ष के चैन जी को समाचार लेने हो ,किसका बेटा कब नोकरी गया ,किसकी बीनणी कब आयी कब गयी ,किसको कितना दहेज दिया ,किसकी गाय कब ब्यायी और गांव के अन्य ताजा समाचार पीरोबा शाम की बंतळ में देते है ।
युवा पीढ़ी को अपने पिताजी से सिफारिश लगवानी होती है या किसी बात को मनवाना हो तो अजातशत्रु पीरोबा को ही सब आगे करते है ।क्योंकि की पिरोबा को पता है किस व्यक्ति को कैसे मनाया जा सकता है इस कला में पारंगत पीरोबा के लिए कुछ मुश्किल नहीं,वे सीधी बात नहीं करते ,बल्कि बात की शुरुआत दादा की दुखती रग से करते और फिर आड़ा-आवेळा हाथ फेरते हुए सही समय पर सही सिफारिश कर देते जिसे उस हालात में दादाजी मना करना मुश्किल लगता ।
गांव में किसी भी बेटी या बहू को लाना ले जाना हो तो पीरोबा का नाम हमेशा लिस्ट में रहता ।क्योंकि पीरोबा का अनुभव सब जानते है कि सगे सम्बन्धियों को अपनी हंसी मजाक से खुश कर देंगे और वापिस आते वक्त पुरे सफर में सामान की जिम्मेदारी खुद ले लेंगे ।होली हो या दिवाली ,पीरोबा हमेशा एडवांस बुक मिलते क्योंकि गांव में इन त्योहारों पर हलवा,लापसी और बेसन की चक्की बनानी हो तो एक ही नाम है- पिरोबा ।
कहते है पीरोबा और दुःख का चोली दामन का साथ रहा ।जन्म के पांच साल के बाद पिताजी का देहांत हो गया था ,इसलिए विधवा मां ने इकलौते बेटे को मेहनत मजदूरी करके पाला था।जवान हुए तो माँ चल बसी ,मगर गांव वालों ने शादी करवा दी और पीरोबा की घरवाली पुरे गांव की बड़ी माँ बन गयी शायद इसलिए की गांव में जितने जवान थे पिरोबा सबसे बड़े थे।
शेष और कभी
माधव राठौड़
Fb पर जुड़ने के लिए इस लिंक पर जाए
https://www.facebook.com/Kuldeep-Singh-Sodha-173005813517107/
पीरोबा को जब से देख रहा हूँ तभी से वही शक्लो सूरत है ,विशेष कोई फर्क नजर नहीं आया ।मेरे ही नहीं पिताजी की स्मृतियों में भी पीरोबा वैसे ही उभरते है, जैसे आज है ।सिर पर सफेद साफा ,छितराई सी मूंछे और हमेशा खिचड़ी मटमैली दाढ़ी ,पीले से दाँत ,चेहरे पर उनके जीवनोभव की तरफ इशारा करती है ।कहते है इस गांव में सबसे अधिक दर्द झेला है और जिंदगी के कई उतार चढावों से गुजरे वो है पीरोबा ।
आप उनके स्थिर चेहरे और उभरते निशान और दर्द को बयां करती वो गहरी आँखे जिससे आप अनुभव की गहराइयों को समझ सकते हो ।,मगर जब वो मुस्कुरातें है तो अपना ही नहीं ,आपका दर्द भी भुला देते है।
पीरोबा गांव के वो एकमात्र आदमी है जिनसे पुरे गांव को लगाव है कुछ स्वार्थवश कुछ निस्वार्थ भाव से ।बच्चे हो बड़े हो स्त्री हो या पुरुष हरेक को गाहे-बगाहे पिरोबा की जरूरत पड़ ही जाती है ।
90 वर्ष के चैन जी को समाचार लेने हो ,किसका बेटा कब नोकरी गया ,किसकी बीनणी कब आयी कब गयी ,किसको कितना दहेज दिया ,किसकी गाय कब ब्यायी और गांव के अन्य ताजा समाचार पीरोबा शाम की बंतळ में देते है ।
युवा पीढ़ी को अपने पिताजी से सिफारिश लगवानी होती है या किसी बात को मनवाना हो तो अजातशत्रु पीरोबा को ही सब आगे करते है ।क्योंकि की पिरोबा को पता है किस व्यक्ति को कैसे मनाया जा सकता है इस कला में पारंगत पीरोबा के लिए कुछ मुश्किल नहीं,वे सीधी बात नहीं करते ,बल्कि बात की शुरुआत दादा की दुखती रग से करते और फिर आड़ा-आवेळा हाथ फेरते हुए सही समय पर सही सिफारिश कर देते जिसे उस हालात में दादाजी मना करना मुश्किल लगता ।
गांव में किसी भी बेटी या बहू को लाना ले जाना हो तो पीरोबा का नाम हमेशा लिस्ट में रहता ।क्योंकि पीरोबा का अनुभव सब जानते है कि सगे सम्बन्धियों को अपनी हंसी मजाक से खुश कर देंगे और वापिस आते वक्त पुरे सफर में सामान की जिम्मेदारी खुद ले लेंगे ।होली हो या दिवाली ,पीरोबा हमेशा एडवांस बुक मिलते क्योंकि गांव में इन त्योहारों पर हलवा,लापसी और बेसन की चक्की बनानी हो तो एक ही नाम है- पिरोबा ।
कहते है पीरोबा और दुःख का चोली दामन का साथ रहा ।जन्म के पांच साल के बाद पिताजी का देहांत हो गया था ,इसलिए विधवा मां ने इकलौते बेटे को मेहनत मजदूरी करके पाला था।जवान हुए तो माँ चल बसी ,मगर गांव वालों ने शादी करवा दी और पीरोबा की घरवाली पुरे गांव की बड़ी माँ बन गयी शायद इसलिए की गांव में जितने जवान थे पिरोबा सबसे बड़े थे।
शेष और कभी
माधव राठौड़
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Comments
कहानी को आगे जरुर
बढाईएगा..